अनागारिक धर्मपाल



21 वर्ष की उम्र से दॉन डेविड ने खुद को ‘अनागारिक’ (बेघरवाला) का नाम दिया और एक सन्यासी (अर्थात एक साधारण व्यक्ति और साधु के बीच का जीवन) के रूप में अपने नये जीवन की शुरुआत की। वे कोलंबो में ब्रह्मविद्या संग में रहने लगे। उन्होंने समाज-सुधार और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किया था।

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संगठन का लक्ष्य

अनागारिक धर्मपाल संगठन भिक्षुओं को धम्मदूत सेवा में नियुक्त करके गौतम बुद्ध के संदेश को भारत, ब्रिटिश और अन्य देशों तक पहुँचाते हुए अनागारिक धर्मपाल के कार्यों को जारी रखने का ज़िम्मेदार है। वह श्री लंका, भारत और ब्रिटेन की महाबोधि परिषदें, उनके द्वारा संचालित विहार, केंद्र और विश्रामशालाएँ आदि की सहायता भी करता है। श्री लंका में वह कोलंबो में एक आयुर्वेदिक अस्पताल का संचालन करता है; बौद्ध मंदिरों के लिए धन-संबंधी सहारा देता है; श्रामणेर भिक्षुओं के लिए शिक्षा कार्यक्रमों का प्रबंध करता है; अनाथालय और स्कूलों का संचालन करता है; बौद्ध साहित्य की छपाई और उसका प्रकाशन करता है और संगठन के विलेख में अंतर्गत विषयों का कार्यान्वयन करता है।

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फोटो गैलरी

हम अनागारिक धर्मपाल की महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक तस्वीरों की माला प्रदर्शित करने जा रहे हैं। तब तक उनमें से कुछ तस्वीरों की झाँकी आप यहाँ देख सकते हैं।